Wednesday 5 July 2017

चीन के लिए भारत से युद्ध करना आसान नहीं..


क्या भारत और चीन सदाबहार दोस्त हो सकते हैं। क्या भारत की तरक्की को चीन अपने लिए चुनौती नहीं मानता है। ये दोनों ऐसे सवाल हैं कि जिसके लिये हमें 1962 या यूं कहे तो उससे पहले पंचशील के सिद्दांतों पर नजर डालना होगा। हिंदी-चीनी भाई भाई का राग अलापने वाले चीनी नेताओं ने 1962 में भारत की पीठ में खंजर भोंक दिया। विकास की सड़क पर भारत अपनी यात्रा को आगे बढ़ा रहा था। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व में विश्वास करने वाले नेहरू को चीन इतने बड़े विश्वासघात की उम्मीद नहीं थी। ये सच है कि भारत को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। लेकिन 2017 में भारत काफी हद तक बदल चुका है।

 चीन ऐसा क्यों करता है ?
पिछले कुछ महीनों में भारत और चीन के रिश्ते खराब हुए हैं। सीपीइसी को लेकर भारत पहले ही अपना ऐतराज कर चुका है। हाल ही में बीजिंग में वन बेल्ट, वन रोड पर आयोजित बैठक में भारत की गैरमौजूदगी चीन को नागवार लगा। इसके अलावा अमेरिका और भारत की बढ़ती नजदीकी से चीन असहज महसूस कर रहा है। हिंदमहासागर में भारत और अमेरिका की सक्रियता से भी चीन नाराज है। लेकिन चीन की ये आदत बन चुकी है कि जब कोई देश उसकी हरकतों के खिलाफ आवाज उठाता है तो चीन यह दिखाने के लिए अपनी गतिविधियां तेज कर देता है। कि वो देश किस हद तक उसका मुकाबला करने के लिए तैयार है।
भूटान के जिस इलाके को लेकर चीन, युद्ध करने की धमकी दे रहा है, वो इलाका सामरिक तौर पर तीनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है। चीन अपनी बात रखने के लिए 1890 के समझौते का हवाला दे रहा है। लेकिन उसने 1988 और 1989 में भूटान के साथ समझौता किया था जिसमें चीन ने उस इलाके को भूटान का हिस्सा माना। भारत और भूटान के बीच रिश्ते घनिष्ठ हैं। इसलिए जब चीन ने डोकलाम इलाके में सड़क बनानी शुरू की को भारत की तरफ से आपत्ति जताई गई।

1962 में अपनी कामयाबी को चीन बताता फिरता है। लेकिन 1962 के बाद दो घटनाओं का जिक्र नहीं करता है जब उसे भारत ने सीमित लड़ाई  में चीन को शिकस्त दी। दरअसल चीन का मूल मकसद भूटान की जमीन हासिल करना नहीं है, बल्कि तिब्बत की तरफ लगने वाली सीमाओं में आधारभूत संरचना को मजबूत करना है।


चीनी चुनौती का सफलतापूर्वक सामना कर चुका है भारत

-1967 में नाथू ला पर चीनी सैनिकों को खदेड़ा था। 1962 की लड़ाई में जीत का जश्न मना रहे चीनी हुक्मरानों ने ऐसा सोचा भी नहीं था। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि भारतीय फौज इतना कड़ा प्रतिवाद कर सकती है।
-1987 में  तवांग(अरुणाचल) के सोमदोरुंग में चीन की नापाक हरकत का सेना ने जवाब दिया। सेना के जवान उन इलाकों से हटे नहीं बल्कि डटे रहे।

जानकार की राय

रक्षा मामलों के जानकार पी के सहगल ने बताया कि 1962 की लड़ाई में भी चीन को भारत सबक सिखा सकता था। लेकिन राजनीतिक तौर पर कुछ भूल हुई। 2017 में जब हम सैन्य ताकत की तुलना करते हैं तो निश्चित तौर पर चीन आगे है। लेकिन एक सच ये भी है कि वैश्विक स्तर पर चीन के सामने कई चुनौतियां है जिसका वो सामना कर रहा है।

भारत कुछ यूं है शक्तिशाली

चीन और भारत की सैन्य क्षमता में अगर तुलना करें तो निश्चित तौर पर चीन की सैन्य ताकत भारत से कही आगे है। लेकिन वैश्विक तौर पर हालात बदल चुके हैं। वैसे भी आज की लड़ाई में दो बातें ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। पहली यह कि आप किस इलाके में लड़ रहे हैं और किस तादाद में अपनी फौज को वहां लगाते हैं।  हिमालय से सटी जो सरहदे हैं, वहां पर चीन की काबिलियत इतनी नहीं है कि वो इतनी जल्दी इतने सैनिक भेजकर भारत को परास्त कर सके। इसके अलावा चीन की जीडीपी और डिफेंस खर्च में जितमी चीजें गिनी जाती हैं हमारे यहां के डिफेंस सेक्टर में नहीं गिनी जाती हैं। लेकिन वे राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में काम करती हैं। भारत में जितने भी अर्द्ध सैन्य बल हैं उन सबको जोड़ने पर संख्या फौज के बराबर है। इस तरह देखा जाए तो हमारी आधी सेना गृह मंत्रालय के अधीन है।



भारत की ताकत बढ़ी

सैन्य साजो सामान के साथ तकनीक के मामले में भारत की क्षमता में लगातार इजाफा हो रहा है। चीन के पास अगर एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम है तो रूस से भारत इसी तरह का सिस्टम खरीद रहा है। हवा से हवा और जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल, लड़ाकू विमान के  मामले में भारत ने प्रगति की है।

चीन के लिए अहम भारतीय बाजार
- 2010 के दौरान भारत में चीन की 30-40 फर्में काम कर रही थीं। लेकिन 2017 के आते आते ये संख्या करीब 500 हो चुकी है।
- 1.6 अरब डॉलर करीब 104 अरब रुपये का निवेश पिछले 16 वर्षों में चीन का भारत में हुआ है।
-2015 में दोनों देशों के बीच करीब 70 अरब डॉलर यानि 4550 अरब रुपये का कारोबार हुआ है।
-जनवरी से सितंबर 2016 के बीच करीब 351 अरब रुपये का सामान चीन से भारत आयात हुआ।
- 2020 तक भारत और चीन के बीच द्विपक्षाय कारोबार करीब 26, 598 अरब रुपये पहुंचने का अनुमान है।
(ये सभी आंकड़े भारत सरकार और चीन की सरकारी मीडिया के रिपोर्ट पर आधारित है।)
चीन की सामरिक मजबूरी
-मौजूदा समय में चीन दक्षिण चीन सागर समेत कई मोर्चों पर घिरा हुआ है।
-ताइवान और तिब्बत मुद्दे पर चीन को नए दुश्मनों का सामना करना पड़ सकता है।
-झिंगझियांग प्रांत में चीन अलगाववादियों का सामना करना पड़ रहा है।
-चीन की वन बेल्ट, वन रोड की योजना पर असर पड़ सकता है।
-दोनों देशों के बीच तनाव की वजह से भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों पर असर पड़ेगा।
भारत के लिए चिंता की वजह
-पाक सीमा पर लगातार तनाव की वजह से चीन के साथ संघर्ष करना आसान नहीं।
-एनएसजी की सदस्यता हासिल करने के लिए  चीन का समर्थन जरूरी
-चीन के मुकाबले सैन्य क्षमता में कमी।

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