बोल बम के जयघोष के साथ सभी भक्त मां गंगा में स्नान करके जलकलश भरकर बाबा भोलेनाथ को अर्पण करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं. काशी के काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए तो भक्तों का जनसैलाब उमड़ता है.सावन का महीना आते ही शिवभक्त उनके दर्शन के लिए अपने- अपने घरों से निकल पड़ते हैं. ये महीना भगवान शिव को बहुत ही प्रिय होता है.
सावन के महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है. इस महीने में शिव मंदिरों में भक्तों की काफी संख्या में भीड़ होती है. सावन के महीने में कांवड़ लेकर जाने और शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा होती है. शिवभक्त बोल बम का जयकारा लगाते हुए बाबा विश्वनाथ को जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करते हैं.
मुराद होती है पूरी-
सावन महीने के चारों सोमवार को शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. पौराणिक कथाओं के अऩुसार इस महीने में जो शिव भक्त पूरे मनोयोग से उनकी पूजा-अर्चना करता है उसकी मुराद भगवान शिव और पार्वती अवश्य पूरी करते हैं. उत्तर भारत में खासकर सावन के महीने में भक्तों का उल्लास देखते ही बनता है. सड़क से लेकर मंदिर तक हर ओर भगवान शिव के भक्त ही नजर आते हैं.
काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. यह मंदिर पिछले कई हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है. काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है. ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं. सन्त एकनाथ जी ने वारकरी सम्प्रदायका महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया. महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है.
काशी की महिमा-
हिन्दू धर्म में कहते हैं कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता. उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं. इस भूमि को आदि सृष्टि स्थली भी कहा गया है.
मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने का कामना से तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे संसार की रचना की.
शिव की होती है बेल पत्र से पूजा- इसी महीने में कांवड़ लेकर जाने और भगवान शिव पर जल चढ़ाने की मान्यता है. इस महीने में ज्यादातर हिंदू सात्विक भोजन करते हैं और भगवान की पूजा करते हैं. सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा के दौरान बेल पत्र से पूजा-अर्चना की जाती है और जल चढ़ाया जाता है.
17 जुलाई, दिन- बुधवार श्रावण मास का प्रथम दिन.
22 जुलाई, प्रथम सोमवार
29 जुलाई, दूसरा सोमवार
5 अगस्त, तीसरा सोमवार
12 अगस्त, चौथा सोमवार
15 अगस्त, श्रावण मास का अंतिम दिन
सावन का महीना शिव जी के साथ-साथ माता पार्वती को भी समर्पित- इस महीना में जो भक्त सच्चे मन से शिव जी और माता पार्वती की पूजा करता है उसे अवश्य ही आशीर्वाद प्राप्त होता है. शादीशुदा महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए व्रत रखती हैं तो वहीं कुंवारी कन्या अच्छे वर के लिए शिव की पूजा अर्चना करती हैं.
मधुकर वाजपेयी / Madhukar Vajpayee
साभार - हि.स.
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