Monday 29 May 2017

राजा भरत की भूमि का नाम इंडिया कैसे पड़ा ?



ऐतिहासिक रुप से जिस विशाल भूभाग को हम भारत कहते हैं, उसे भारत वर्ष या पुराणों के अनुसार प्रसिद्ध राजा भरत की भूमि के नाम से जाना जाता था। यह क्षेत्र जंबू द्वीप नाम के उस बड़े क्षेत्र का हिस्सा था, जो कि उन सात महाद्वीपों का अंतरतम भाग था जिनमें हिंदू सृष्टिवर्णनकर्ताओं के अनुसार, पृथ्वी को विभाजित किया गया था। 

देश को ‘इंडिया’ नाम यूनानियों ने दिया। यह पुराने फारसी शिलालेखों के ‘हि-न-दू’ से मेल खाता है। ‘सप्त सिंधव’ और ‘हप्त हिंदू’ नाम की तरह जो कि वेद और वेदीनंद ने इस आर्य देश को दिया था। यह नाम महान सिंधु नदी से आया जो कि इस उपमहाद्वीप की सबसे बड़ी विशेषता है और इसने ही सबसे पुरानी सभ्यताओं का पोषण किया। दक्षिण पश्चिमी तिब्बत से 16,000 फुट की उंचाई से निकलती सिंधु, लद्दाख के लेह के पास से भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करती है।

इस नदी का कुल जलनिकासी क्षेत्र लगभग 4,50,000 वर्ग मील है, जिसमें से 1,75,000 वर्ग मील हिमालय की पहाडि़यों और उसकी तलहटी में है।

 

जम्मू कश्मीर राज्य के लेह से 11 मील आगे बहने के बाद इस बेसिन में बायें ओर से इसकी पहली सहायक नदी जांस्कर जुड़ती है, जो कि जांस्कर घाटी को हरा भरा रखती है। पर्वतारोहण प्रेमियों को जांस्कर घाटी के कई पहाड़ी मार्ग आकर्षित करते हैं। सिंधु नदी फिर बटालिक के पास से होकर बहती है। जब यह मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है तो इसमें पांच प्रसिद्ध सहायक नदियां झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलज जुड़ जाती हैं। इन पांच नदियों के कारण धान का कटोरा कहे जाने वाले पंजाब को ‘पांच नदियों की भूमि’ भी कहा जाता है। 

हालांकि, भारत से जुड़े ज्यादातर मिथक और भाव गंगा नदी से संबंधित हैं। गंगा नदी का पानी कभी शांत तो कभी उग्र है। प्रकृति की अप्रतिम सुंदरता और मानव आकांक्षाएं सब गंगा से ही पूरी होती हैं। सभ्यता के विकास के साथ साथ इसके किनारों पर पहुंचने के लिए तीर्थयात्रा होने लगी और मेले और त्यौहार मनने लगे। गंगा का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि भारतीय सभ्यता का। हड़प्पा सभ्यता को छोड़कर गंगा बेसिन भारत की पौराणिक कथाओं, इतिहास और लोगों के जीवन के हर पल का गवाह रहा है। भारत के महान साम्राज्यों जैसे मगध, गुप्त और मुगलों ने स्वयं को इसी मैदानी क्षेत्र में स्थापित किया। आज तक की सबसे समरुप संस्कृतियों का जन्म इसी क्षेत्र में हुआ। इसके अलावा, इसी जगह भारत में हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म का भाव स्थापित हुआ। यह नदी भारत की आर्थिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवनरेखा रही है। 

महान गंगा नदी का उद्भव उत्तर भारत के गढ़वाल क्षेत्र में गंगोत्री ग्लेशियर के नीचे से होता है, जो कि समुद्र तल से 3959 मीटर की उंचाई पर है। यहां इसे स्वर्ग से धरती पर लाने वाले महान राजकुमार भगीरथ के नाम पर, भागीरथी के नाम से जाना जाता है। गंगा गोमुख से बाहर फूट कर आती है जो गाय के मुंह के आकार की बर्फ से ढंकी एक गुफा है। भागीरथी इसमें से लगातार चमकती हुई और ग्लेशियर से टूटते बर्फ के बड़े बड़े टुकड़ों के साथ बहती है। इससे 18 किमी नीचे गंगोत्री है। ग्लेशियर के पिघलने और वर्तमान गोमुख की स्थिति के पहले यही गंगा का स्रोत था। गंगोत्री से आगे गंगा उत्तर भारत के मैदानी इलाकों से गुजरती है जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश शामिल हैं। गंगा और उसकी सहायक नदियों के मार्ग में कई आबाद इलाके आते हैं जिन्होंने अपनी विशिष्ट संस्कृति स्वयं विकसित की है।


इस पवित्र नदी की उत्तर भारत की प्रारंभिक यात्रा के दौरान इसके तट पर उत्तरकाशी, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, ऋषिकेश और हरिद्वार जैसे महत्वपूर्ण स्थान आते हंै। हरिद्वार से इलाहाबाद तक गंगा के समानांतर यमुना नदी बहती है, जो उत्तर भारत की एक और प्रमुख नदी है। गंगा गढ़मुक्तेश्वर से भी गुजरती है, जहां माना जाता है कि देवी गंगा पांडवों के पूर्वज शांतनु को दिखती थी। यह बिठुर से भी बहती है जो कानपुर के पास लेकिन उससे बहुत पुराना शहर है। यहां एक प्राचीन शिव मंदिर भी है। तब जाकर गंगा इलाहाबाद पहुंचती है जो भारत का एक बहुत महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है। 

इलाहाबाद एक पवित्र स्थान है जिसमें आत्मा को शुद्ध करने तक की शक्तियां हैं, खासकर पौराणिक और भूमिगत नदी सरस्वती के कारण। माना जाता है कि सरस्वती इस स्थान पर गंगा और यमुना के साथ मिलती है जिसे संगम कहते हैं। वैदिक काल में इस संगम पर एक स्थान था जिसका नाम प्रयाग था, वहां वेद लिखे गए थे। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने स्वयं यहां बलिदान दिया था। हून त्सांग ने 634 ईसवी में प्रयाग की यात्रा की थी। मुगल शासक अकबर ने इस स्थान का नाम बदलकर इलाहाबास किया था जो बाद में इलाहाबाद में बदल गया। संगम के सामने अकबर द्वारा बनवाया गया विशाल ऐतिहासिक लाल पत्थरों से बना किला है।
 


हरिद्वार की तरह ही वाराणसी भी मंदिरों का शहर है। हालांकि वाराणसी का वर्णन करना मुश्किल है। श्री रामकृष्ण ने एक बार कहा था, ‘वाराणसी का शब्दों में वर्णन करने के प्रयास में पूरे संसार का नक्शा तैयार किया जा सकता है’। धरती के सभी शहरों में सबसे पुराने इस शहर का इतिहास 2500 साल पुराना है। इसे बुद्ध के दिनों में भी जाना जाता था। प्राचीन ग्रंथों में इसका वर्णन होता रहा है और यह भगवान शिव से जुड़ा एक पवित्र तीर्थस्थल रहा है। हिंदुओं में मान्यता है कि इस स्थान पर प्राण त्यागने वाले को सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। आश्चर्य है कि वाराणसी का नाम गंगा के महान संगम पर नहीं बल्कि उससे यहां जुड़ती दो छोटी नदियों वरुणा और असी के नाम से मिलकर बना। भारत की सबसे प्राचीन आबाद बस्ती काशी वरुणा के उत्तर में स्थित है। 

अपने मैदानी इलाकों को पार करके गंगा पटना से बहती है। पटना का वर्णन भारत के इतिहास की किताबों में प्रसिद्ध पाटलीपुत्र के नाम से है। प्रसिद्ध शिकारी और संरक्षणवादी जिम काॅर्बेट के भारत में रहने के दौरान उनके कार्य स्थल मोकामा से भी गंगा गुजरती है। यह फरक्का बैराज से बहती है, जो हुगली नदी में पानी छोड़ने के लिए बनाया गया ताकि हुगली में कीचड़ का जमना रोका जा सके। इसके तुरंत बाद गंगा कई सहायक नदियों में बंट जाती है, जो गंगा डेल्टा का निर्माण करती हैं। हुगली इसकी एक सहायक नदी है जिसे सच्ची गंगा माना जाता है। इसकी एक मुख्य नहर बांग्लादेश जाती है जिसे वहां पद्मा नदी कहा जाता है, यह प्रसिद्ध भारतीय कवि रवींद्रनाथ टैगौर को बहुत प्यारी थी। 

गंगा की तरह ही भारत भर में बहने वाली नदियां उस क्षेत्र के लोगों के लिए पवित्र हैं। यही बात उत्तर भारत में गंगा के मैदानी इलाकों के साथ साथ देश के दक्षिण क्षेत्र पर भी लागू होती है। यह विंध्य पर्वत की श्रृंखला वाला पहाड़ी क्षेत्र है, जहां भारत के लोगों द्वारा पूजी जाने वाली कावेरी नदी की उर्वर भूमि है। यह नदी नीलगिरी के आसमानी पर्वतों से बहती है। आज इस क्षेत्र में भारत के चार राज्य आते हैं, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश। समय के साथ परंपराओं की निरंतरता इन राज्यों में साफ दिखाई देती है। कावेरी के भूमि क्षेत्र के उपर उड़ीसा राज्य स्थित है। उड़ीसा भारत का एक और संस्कृति समृद्ध राज्य है, जिसका पोषण महानदी नाम की नदी करती है। 


पूरे पूर्वी भारत से विशाल ब्रह्मपुत्र नदी बहती है। ब्रह्मपुत्र का पानी चीन से होता हुआ भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम में आता है। आगे उत्तरपूर्व में सात अन्य राज्य हैं, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम। भारत के मध्य और पश्चिम क्षेत्र में दो नदियां, नर्मदा और ताप्ती हैं। इनकी विशेषता है कि वो भारत की अन्य नदियों से भिन्न पूर्व से पश्चिम में बहती हैं, इसमें ब्रह्मपुत्र एक अपवाद है। इन दोनोें में से नर्मदा का पौराणिक महत्व ज्यादा है क्योंकि इसे मां और दानी माना गया है। मान्यता है कि नर्मदा के दर्शन मात्र से आत्मा शुद्ध हो जाती है, जबकि इसी कार्य के लिए गंगा में एक और यमुना में सात बार डुबकी लगाई जाती है। 

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