Sunday, 28 May 2017

मेरा देश, मेरा वतन - भारत



भारत को जानना है तो उसकी आवाज़ सुनो। वह आवाज़ जो प्राचीन गुफाओं की दीवारों पर उकेर कर लिखे गए शिलालेखों से आती है, उसे सुनो। सुनो किसी साधु को या किसी लोक कथाकार को, हमेशा से बहती आई किसी सदाबहार नदी को या सालों से खड़े अमर विशाल पर्वतों से गूंजकर लौटती आवाज़ सुनो। किसी संगमरमर या पत्थर पर साकार रुप में उकेरी गई प्रार्थना को देखो या किसी बरगद के नीचे लेटो और सुनो, इस भारत को सुनो। 

यह नाम भारत, उस विशाल प्रायद्वीप को दिया गया है जो एशिया महाद्वीप में तिब्बत की दक्षिणी सीमा पर एक तलवार की तरह घुमावदार आकार वाली विशाल पर्वत श्रृंखला से लगा है। एक अव्यवस्थित चतुर्भुज के आकार वाला, बड़े इलाके में फैला यह क्षेत्र जिसे हम भारत कहते हैं, उपमहाद्वीप के नाम का सच्चा हकदार है। प्राचीन भूगोलज्ञ भारत को ‘चतुः समस्थाना संस्थितं से गठित’ कहते थे। इसके दक्षिण, पश्चिम और पूर्व दिशा में महान महासागर और उत्तर में धनुष की प्रत्यंचा की तरह हिमवत श्रृंखला फैली है। 

हिमवत नाम ना सिर्फ बर्फ से ढंके हिमालय बल्कि उससे कम उंचाई वाले पूर्व दिशा में स्थित पटकाई, लुशाई और चटगांव पर्वत और पश्चिम के सुलेमान और किरथर श्रृंखला को भी कहा जाता है। यह श्रृंखला समुद्र तक जाती है और एक ओर यह भारत को वृक्षयुक्त इरावती घाटी से अलग करती है तो दूसरी ओर इसे ईरान के पर्वतीय पठार से अलग करती है। मिथकों और रहस्यों से भरा विशाल हिमालय अपने अद्भुत वैभव के साथ स्थित है। यह छोटी बड़ी पर्वत श्रंखलाएं अपनी बर्फ की कभी ना खत्म होने वाली धाराओं से गंगा को पोषित करती रहती हैं। हिमालय कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के लोगों का घर है। 

प्रत्येक भारतीय को बर्फ से ढंकी पहाड़ों की चोटियों से प्यार है क्योंकि यह हर भारतीय के जीवन का हिस्सा है। भारतीय लोग पहाड़ों का वैसा ही सम्मान करते हैं जैसा वह अपने पिता का करते हैं। आज भी जब भारत के शहरों में लोगों की समय के साथ दौड़ चल रही है, कुछ तपस्वी हैं जो दिव्यता की खोज में बर्फ से ढंके पहाड़ों पर गुफाओं में रहते हैं। यह कोई आश्चर्य नहीं है कि आज के युग में भी कुछ महान दार्शनिक हुए हैं जैसे रमण महर्षि, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस और जे कृष्णमूर्ति।

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